गढ़वाल अर्थात् गढ़+वाल-गढ़ों वाला क्षेत्र। अर्थात् वह क्षेत्र जिसमें कई गढ हों। गढ़ शब्द का अर्थ है पर्वतीय क्षेत्रों में अथवा पहाड़ियों पर किले। उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में 'गढ़' शब्द पहाड़ी किलों का बोधक है, जो सुरक्षा की दृष्टि से पहाड़ियों की चोटियों पर बनाये जाते थे। पं. हरिकृष्ण रतूड़ी के अनुसार ऐसा पर्वतीय क्षेत्र जिसमें कई गढ़ हों, उसे गढदेश, गढ़वार या गढ़वाला कहा गया। शनै:-शनै: गढ़वाला शब्द गढ़वाल कहलाने लगा। ये किले पूर्वकाल के छोटे-छोटे ठकुरी राजाओं, सरदारों और थोकदारों के थे तथा उन राजाओं और सरदारों के राज्य विभागों के नाम भी पृथक-पृथक थे, जो अब परगनों और पटियों के नाम से विख्यात हैं। संतान ले बालनाथ जोगी को संतान पते पतीसाहीदेव न्यूले' उल्लेख मिलता है। केदारखण्ड का भौगोलिक क्षेत्र दक्षिण में गंगाद्वार (हरिद्वार) से उत्तर में श्वेतांग पर्वत (हिमालय) श्रेणियों के अंत तक तथा पूर्व में बौद्धांचल (संभवत: बधाण पट्टी) से पश्चिम में तमसा (टोन्स) तक माना जाता है। पौराणिक ग्रंथ केदारखण्ड के इस श्लोक से यह स्पष्ट है।
गंगाद्वार मर्यादं श्वेतांत वर वर्णिनि। तमसा तटतः पूर्व माऽर्य बौद्धाचलं शुभम्।।28।।
केदारखण्ड या हिमवंत प्रदेश का नाम गढ़वाल पड़ने के सम्बन्ध में साहित्यकार डॉ. हरिदत्त भट्ट 'शैलेश' का मत है कि इस भूभाग में असंख्य छोटी-बड़ी जलधारायें हैं जो क्रमश: 'गड' तथा 'गाड' कहलाती हैं। ये दोनों शब्द वैदिक संस्कृत के हैं। इतनी जलधारायें, कश्मीर, कुमाऊँ, हिमाचल प्रदेश तथा नेपाल किसी भी पर्वतीय प्रदेश में नहीं हैं। अतः 'गडवाल' अर्थात् छोटी-छोटी नदियों वाला प्रदेश ही कालांतर में गढ़वाल नाम से विख्यात हो गया। यों भी गढ़वाल में दोनों प्रमुख नयार नदियों को प्रारंभिक अवस्था में ढाईज्यूली गाड (प. नयार) तथा स्यूंसी या कैन्यूर गाड (पू. नयार) कहा गया है। इन दोनों तथा गढ़वाल की सभी बड़ी नदियों (गाड) की सहायक छोटी-बड़ी नदियों (गड या गाड) के कुछ नाम इस प्रकार हैं, जैसे- अट्टागाड, रथगड, ढौंडीगाड, धुरपालीगाड, लच्छीगाड, रिखागाड, पचौरागाड, मछलदगाड, मुसेटीगाड, भैंसगड, मैदीगाड (उत्तरोमुखी मधुगंगा), सैन्तोलीगाड, चौमासगाड, पैडुलगाड, कोलागड, खरगड, सेलगड, केलगड, पिनगड, विडोलगड, सिगड, गैडगड, कटूलीगाड, गडूलीगाड, अमोठागाड, किमोलीगाड, कौडागाड, धनगड एवं भेलगड आदि। ___ गढ़वाल क्षेत्र में जातियों के नाम के आगे अकारांत शब्दों में 'वाल' जैसे सेमवाल. डंगवाल तथा इकारांत शब्दों में 'याल', जैसे थपलियाल, नौटियाल लगता है। 'वाल' या 'वार' शब्द की उत्पत्ति 'वारि' (जल) से भी संभव है। संस्कृत में रलयोरमेढ अर्थात 'र' और 'ल' में कोई अंतर नहीं माना गया है। अत: यह भी सम्भव है कि 'गढवाल' शब्द की उत्पत्ति 'गढ़वार' से हुई हो। पातीराम ने अपनी पुस्तक (Garhwal Ancient and Modern) में उल्लेख किया है कि गढ़पाल से गढ़वाल नाम पड़ा है, क्योंकि गढ़वाल में संकल्प पूजा-पाठ में 'गढ़पाल' शब्द का बार-बार प्रयोग हुआ है।