देवलगढ़ (राजराजेश्वरी, गौरजा देवी, वा वहाँ स्थित समस्त मंदिरों वा पर्यटक स्थलों) का ऐतिहासिक वा सांस्कृतिक वृतांत अध्ययन
देवलगढ़ नाम कांगडा हिमाचल प्रदेश से आए राजा देवल के नाम पर रखा गया था। उन्हीं ने यहाँ देवलगढ़ के भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था।
तत्पश्चात कालांतर में पंवार वंश के 37वें राजा अजयपाल (1500-1519) ने अपने भुजबल से पूर्वजों के लघु राज्य को विशाल राज्य बनाने के लिए समस्त गढपतियों पर विजय हासिल की और गढ़ प्रदेशों का एकीकरण किया। राजा अजयपाल ने पहले चांदपुरगढी से देवलगढ़ को नई राजधानी बनाया, फिर उसे स्थानांतरित कर श्रीनगर (1517) को अपनी शीतकालीन राजधानी बनाया। इन्हीं ने कत्युरी शासकों से सोना का सिंहासन छीना था। तत्पश्चात अन्य भक्तों ने बाद में यहाँ अनेकों छोटे-छोटे मंदिर बनवाए।
देवलगढ़ में मौजूद प्रमुख मंदिर :
मां गौरजा देवी (श्री गौरा देवी)
मां राजराजेश्वरी
क्षेत्रपाल देवता
कालनाथ भैरव देवता
बाबा सत्यनाथ कमलनाथ पीठ
श्री लक्ष्मी नारायण पीठ
मुरलीमनोहर पिठ
श्री दत्तात्रेय मंदिर अखाड़ा गांव में
मां राजराजेश्वरी
वेदों में वर्णित दस महाविधाओं काली, तारा, षोढषी, भैरवी, भुवनेश्वरी, मांतगी, धूमावती बगलामुखी छिन्न मस्तका और कमला में तृतीय महाविघा षोढषी को मां राजराजेश्वरी कहा जाता है। देवलगढ़ स्थित मां राजराजेश्वरी मंदिर में राजा अजयपाल ने मंदिर के तृतीय भवन में उन्नत श्री यंत्र स्वरुप मां श्री राजराजेश्वरी की स्थापना करवाई थी। उस वक्त सिद्धपीठ में श्री महिषासुरमर्दिनी यंत्र, श्री कामाख्या यंत्र तथा बटुक भैरवनाथ जी की भी स्थापना की गई थी। वैधानिक हवन की परंपरा बनी रहने के कारण इस पीठ को जागृत सिद्धपीठ कहा जाता है।
सोम का भांडा :
देवलगढ़ स्थित 'सोम का भांडा' स्मारक प्राचीन समय में राजाओं की राजधानी थी।स्मारक की दिवारों पर कूटलिपि अंकित है।
नाथ सिद्धों की गुफाएं ( नाथ सिद्धों की गुमठियां) वा भैरव गुफा :
देवलगढ़ मंदिर की निचली पहाड़ी में प्राचीन नाथ सिद्धों की गुफाएं मौजूद हैं, यहाँ छटवीं सदी में प्रयोग की जाने वाली भाषा (ब्राम्ही) में कुछ लिखा हुआ है, हजारों सालों की मार झेलने के बाद अब इन शब्दों के कुछ-एक हिस्से बाकी हैं, इतिहासविदों के लिए ये गुफाऐं आज भी अनसुलझी पहेली हैं जिनका इतिहास के पन्नों में बहुत कम उल्लेख वर्णित है।
भैगोलिक अध्ययन :
पहाड़ी चट्टानों वा सुंरगों को काट कर गौरजा देवी और मां राजराजेश्वरी देवी मंदिरों के लिए रास्ता तैयारी किया गया है। हजारों सालों से मौसम की मार झेलने के कारण वर्तमान स्थिति में सुरंगें एसी हालत में नहीं हैं जिनमें कोई जा सके।प्राचीन समय में निगरानी करने वाले चबूतरों के भी ज्यादातर हिस्से छतीग्रस्त हो छुके हैं।
ज्यादातर प्राचीन धरोहरों में लोगों द्वारा किसी ना किसी तरह की छती पहुँचना या गंदगी करना एक आम बात हो गई है एसे हालत में ऑस्कर वाइल्ड की कही एक बात याद आती है
"मुझे हर चीज की कीमत पता है, बस उसकी कद्र नहीं है"॥ "The Price Of Everything, The Value Of Nothing". Oscar Wilde