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घोड़ों की सरपट चाल एवम इलेक्ट्रॉन की गतिशीलता: वर्ष 2023 के भौतिकी के नोबेल पुरस्कार की रोचक व्याख्या।


इस लेख में विज्ञान प्रसार के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉo टीoवीo वेंकटेश्वर के मूल अंग्रेजी लेख का अनुवाद शामिल है।

“जब घोड़े सरपट दौड़ते हैं, तो क्या सभी चार खुर धरती छोड़ देते हैं? जिससे घोड़े क्षण भर के लिए हवा में उड़ते हुए से नजर आते हैं? कैसे हम इस को तस्वीर में कैद कर सकते हैं? और क्या हम इसे इलेक्ट्रॉनों की गतिशीलता के संदर्भ में समझ सकते हैं”?
घोड़ों ने प्राचीन काल से ही मानव की कल्पना पर अपना एक गहरा प्रभाव अंकित किया है। वे हमेशा से ही अपने कलात्मक प्रदर्शनों एवम अपनी असाधारण ऊर्जा एवम अनोखी सामर्थ्य के चलते मानव जाति का एक अभिन्न हिस्सा रहे हैं। घोड़ों के कलात्मक प्रदर्शन एवम उनकी रोमांचित करदेनी वाली सरपट चाल की बात करें तो हमें उनके कुछ चिन्ह भोपाल के पास भीमबेटका की शैल-आश्रयों की प्रागैतिहासिक गुफाओं से लेकर आधुनिक समय के कलात्मक चित्रों में बखूबी देखने को मिलते हैं। इन सरपट दौड़ते घोड़ों के चित्र में देखने को मिलता है कि घोड़ों ने अपने पिछले पैरों को अपने पेट के पास लाकर इक्कठा कर दिया है और अगले पैरों को हवा में छोड़ दिया है। अब प्रश्न यह दिमाग में आता है कि जब घोड़े अपने तीव्र गति से  दौड़ लगाते हैं तो क्या सभी चारों खुरों द्वारा जमीन छोड़ दी जाती है? और क्या घोड़े कुछ पल के लिए हवा में उड़ रहे होते हैं?


घोड़े की चाल का रहस्य

मि० लेनन स्टैनफोर्ड (एक अमेरिकी उधमी एवम  दान दाता, इन्होंने अपने इकलौते बेटे की याद के रूप में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय की स्थापना करने के लिए काफी धन दान में दिया था) को भी घोड़ों के तीव्र गतिशीलता के दौरान  उनके पैरों की गति अवलोकन एवम उनकी फोटोग्राफी के लिए काफी रुचि थी और उन्होंने अपनी इस रुचि के चलते काफी धन खर्च भी किया था। यह तो  स्पष्ट था कि नग्न आंखों से सरपट दौड़ते पैरों का अवलोकन संभव नहीं है। और कैमरे से खींची गई एक ही तस्वीर से ही घोड़े की चाल के प्रत्येक क्रम को अवलोकित कर यह प्रमाणित किया जा सकता है कि सरपट दौड़ते समय कुछ समयांतराल के लिए सभी पैर हवा में होते हैं। परंतु सामान्य तस्वीरों के लिए भी लगभग 15 सेकंड से एक मिनट के अवलोकन  समय की आवश्यकता होती है, तो फिर घोड़ों की तीव्र गति के अवलोकन के लिए यह एकदम असंभव कार्य था।  वर्ष 1878 में, एक प्रसिद्ध फ़ोटोग्राफ़र एडवर्ड म्यूयब्रिज ने  इस तरह की घटना के चित्र खींचने के लिए एक नवाचार युक्त समाधान लेकर आए। उन्हें मिo स्टैनफोर्ड के द्वारा इस नवाचार के लिए कुछ सहयोग धन राशि दी गई थी, जिससे उन्होंने कुछ अत्यधिक संवेदनशील इमल्शन विकाशित किए और फिर उन्होंने 12 कैमरों की एक बैटरी को बनाया जिसमे प्रत्येक कैमरा एक ट्रिप तार से जोड़ कर एक दोपहिया गाड़ी से बांध कर रखा गया, जेसे ही घोड़ों ने दोपहिया गाड़ी को खींचा और तीव्रता से आगे बढे, कैमरों से बंधा तार टूटने से सभी कैमरों ने बारी बारी से आधे सेकंड से भी कम समय में तेजी से तस्वीरें खींच ली और बाद में इन तस्वीरों की फोटोग्राफिक प्लेटें विकसित की गईं और जो देखा गया वह फोटोग्राफर की कल्पना के विपरीत था । जिसमे देखा गया कि चारों पैर घोड़े के नीचे छिपे हुए हैं।
Noble Prize Physics 2023

परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की स्थिति

लगभग उसी समयकालीन खंड में वर्ष 1887 में, जर्मन भौतिक विज्ञानी हेनरिक रुडोल्फ हर्ट्ज़ ने फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव खोज लिया था, एक अन्य जर्मन भौतिकशास्त्री फ़िलिप लेनार्ड ने यह  स्पष्ट किया कि आवेशित कण एवम इलेक्ट्रॉन किसी पराबैंगनी किरणों द्वारा प्रकाशित होने पर धातु की सतह से मुक्त हो जाते हैं। आइंस्टीन ने इस घटना को विस्तृत रूप से रखा और उन्हें इस खोज के लिए नोबेल पुरस्कार से समान्नित किया गया। आइंस्टीन बताया कि उचित ऊर्जा से युक्त प्रकाश का कण "फोटोन", किसी धात्विक परमाणु से एक इलेक्ट्रॉन को तोड़ विलग कर सकता है और फोटॉन की ऊर्जा इस विलगित इलेक्ट्रॉन में स्थानांतरित हो जाती है। जिससे उच्च ऊर्जा वाला इलेक्ट्रॉन स्वयं को परमाणु या नाभिकीय  पकड़ से मुक्त करने में सक्षम हो जाता है और नाभिकीय आकर्षण से बाहर निकल सकता है। इसी सिद्धांत का प्रयोग करके हम सौर पैनल को, सूर्य के प्रकाश को विद्युतीय रूप में उत्पन्न करने में सक्षम बनाते हैं।  अब प्रश्न उठता है कि जब प्रकाश किसी धातु से टकराता है तो क्या तो क्या इलेक्ट्रॉनों का निष्कासन या उत्सर्जन तत्काल होता है?
जिस प्रकार बड़ी तीव्रता से दौड़ते घोड़े की चाल के सभी चरणों को क्रमबद्ध एवम उचित रूप से अवलोकन करने के लिए हमें एक ऐसे कैमरे की आवश्यकता है  जो एक सेकंड के सौवें हिस्से में गतिक छवियों को शूट कर सके। ठीक उसी प्रकार एक परमाणु के अंदर किसी इलेक्ट्रॉन की गति को पकड़ने के लिए हमें ऐसे कैमरों की आवश्यकता है जो सैकड़ों एटोसेकंड में तस्वीरें ले सकें। (एटोसेकंड = एक सेकंड का 0.000000000000001)।  वर्ष 1925 में क्वांटम यांत्रिकी के अग्रदूतों में से एक  वर्नर हाइजनबर्ग ने बताया कि किसी गतिमान कण की स्थिति एवम संवेग को एक दम सटीक तरीके से नहीं मापा जा सकता है। और निष्कर्ष के तौर पर कह सकते हैं कि किसी कण की व्यवहार्यता का आंकलन असंभव है। यदि हम क्लासिकल भौतिकी की बात करें तो हम देखते हैं कि पृथ्वी को सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने में एक वर्ष लगता है, जबकि नेपच्यून  ग्रह को 165 वर्ष लगते हैं। मानव हृदय की धड़कन और पलक झपकाने को मापने के लिए हम समय की इकाइयों जैसे मिनट और सेकंड का उपयोग करते हैं। वहीं इंटरनेट संचार के लिए पैकेट स्विचिंग के लिए मिलीसेकंड तक सटीकता के साथ समय की माप की आवश्यकता होती है। जब हम परमाणु और अणु  जो की काफी सूक्ष्म (लगभग 0.1 से 0.3 नैनोमीटर) होते हैं। प्रकाश की  एक चमक को 0.3 नैनो मीटर की दूरी तय करने में लगभग एक एटोसेकंड लगता है। एटोसेकंड के समयकाल में किसी भी घटना का अवलोकन एवम इलेक्ट्रोन का  आणविक बंधन और रासायनिक प्रतिक्रियाएं में बहुआयमी व्यवहार का पता लगाने के लिए हमें ऐसे हल्के स्पंदन बनाने की आवश्यकता होती है जो एक एटोसेकंड के हों, यानी एक नैनोसेकंड का एक अरबवां हिस्सा और यह सब तत्कालीन वैज्ञानिक वर्नर हाइजनबर्ग की कल्पना से परे था।

एक सुपरफास्ट कैमरे की तलाश


जिस प्रकार अतीत में फोटोग्राफर मुयब्रिज को सरपट दौड़ते घोड़े की चाल की सही तस्वीर लेने के  लिए सही उपकरण  की आवश्यकता थी, उसी प्रकार भौतिकविदों को इलेक्ट्रॉनों की गति के सटीक अवलोकन  के लिए एक सुपरफास्ट कैमरे की आवश्यकता थी। जैसा कि हम जानते हैं कि जब वस्तु बहुत तीव्र गति से गतिमान होती है  तो वस्तु की इमेज (छवियाँ) धुंधली हो जाती हैं। हालाँकि, तेज़ स्ट्रोब लाइट से उस वस्तु को एक सेकंड से भी कम समय के के लिए दीप्त किया जा सकता है। और हम ऐसे चित्र ले सकते हैं जिनकी समय के साथ स्थिरता बनी रहती है। परमाणुओं और अणुओं के भीतर इलेक्ट्रोनों की गतिशीलता का अवलोकन करने के लिए हमे प्रकाश की एक तीव्र दीप्ति की आवश्यकता होती है। इस बार वर्ष 2023 में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार,  पियरे एगोस्टिनी, फ़ेरेन्क क्रॉस्ज़ और ऐनी एल'हुइलियर को दिए जाने की घोषणा हुई है और कहीं न कहीं इनकी खोज को सुपरफास्ट कैमरे को बनाने में इस्तमाल लाया जा सकता है। और परमाणुओं के भीतर इलेक्ट्रोनो के व्यहार एवम  तीव्र गतिशीलता वाली सभी घटनाओं की तस्वीरें लेना संभव हो सकता है।
तीव्र गतिशीलता के अवलोकन के परिक्षण की शुरूआत मिश्र-अमेरिकी वैज्ञानिक  अहमद हसन ज़ेवेल (26 फरवरी, 1946 - 2 अगस्त, 2016)  ने किया था। इन्होंने सर्वप्रथम  स्ट्रोब-लाइट का आविष्कार किया जो केवल दसियों और सैकड़ों फेमटोसेकंड (एक सेकंड के एक अरबवें का दस लाखवां हिस्सा) के समयावधि  में दीप्त होती है। ज़ेवेल ने अपने शुरुवाती अध्यनों में पाया कि हाइड्रोजन परमाणुओं और कार्बन डाइऑक्साइड के बीच होने वाली रासायनिक प्रतिक्रियाएं: H + CO2
CO + OH में एक मध्य अवस्था होती है जिसमे HOCO बनता है और CO + OH में विघटित होने से पहले यह 1000 फेमटोसेकंड तक बना  रहता है। उनके इस  फेमटोसेकंड  में होने वाली रासायनिक प्रतिक्रियाओं के अध्यन एवम इसी के साथ फेमटोकेमिस्ट्री की स्थापना के लिए वर्ष 1999 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।  इससे यह स्पष्ट हुआ कि हम किसी उत्कृष्ट स्ट्रोब-प्रभाव के प्रयोग से केवल फेमटोसेकंड की एक पल्स प्राप्त कर सकते हैं, जो की अणुओं के बीच होने वाली रासायनिक प्रतिक्रियाओं को समझने के लिए सहायक होती है।  जबकि देखा जाय तो हमें परमाणुओं और अणुओं के अंदर की रासायनिक प्रतिक्रियाओं का सटीक चित्रण करने के लिए फेमटोसेकंड की तुलना में एक हजार गुना छोटे पल्स की आवश्यकता होती है।  किसी दृश्यमान प्रकाश की तरंगदैर्घ्य 400 नैनोमीटर (बैंगनी प्रकाश) से 700 नैनोमीटर (लाल प्रकाश) के बीच होती है। किसी एकल तरंग को उसके शीर्ष से गर्त तक और फिर शीर्ष तक जाने में 1.3 और 2.3 फेमटोसेकंड का समय लगता है। परन्तु इस समयावधि का अनंतिम स्पंदन भी इलेक्ट्रॉनों की तीव्र गतिशीलता एवम परमाणु के अंदर उसकी स्थिति का चित्रण करने के लिए उपयुक्त नही है।
एक नवाचार सोच!

क्या हम उन छोटी इकाइयों को माप सकते हैं जिन्हें सामान्य स्केल पर नहीं दर्शाया जा सकता है?

उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि हमारे पास केवल 5-लीटर और 3-लीटर की माप वाले दो जार हैं और इन दोनों का ही उपयोग कर हम सरलता से एक लीटर पानी माप सकते हैं। आओ इसे क्रमश समझते हैं।
1. 3-लीटर के डिब्बे में पानी भरें।
2. 3-लीटर के डिब्बे से पानी 5-लीटर के डिब्बे में डालें।
3. 3-लीटर के डिब्बे को फिर से पानी से भरें।
4. 3-लीटर के डिब्बे से पानी को 5-लीटर के डिब्बे में तब तक डालें जब तक वह पूरा न भर जाए।
अभी भी हमारे पास 3 लीटर के डिब्बे में 1 लीटर पानी बचा है। और इस तरह एक लीटर पानी की माप का उद्देश्य पूरा हुआ बिना किसी एक लीटर की माप वाले जार की आवश्यकता के।

कुछ इसी तरह की सोच के साथ ऐनी एल'हुइलियर और उनकी टीम ने वर्तमान खोज के माध्यम से एक समाधान प्रस्तुत किया।

हम जानते हैं कि प्रकाश भी एक तरंग की तरह व्यवहार करता है। जब प्रकाश की दो तरंगे आपस में मिलती हैं तो कुछ नए परिणाम देखने को मिलते हैं। यदि दोनो तरंगों की तरंग दैर्ध्य समान है और एक का शीर्ष दूसरे के शीर्ष के साथ एक ही कला में हैं  तो  उस स्थिति में वे जुड़ते हैं और परिणामी तरंग का आयाम बढ़ जाता है। हालाँकि, यदि तरंग दैर्ध्य समान है और एक का शीर्ष दूसरे के गर्त से बिल्कुल मिलता है तो वे रद्द हो जाते हैं। और यदि दो आसमान तरंग दैर्ध्य वाली तरंगे मिलती हैं तो वे एक दूसरे पर अध्यारोपित  होकर एक नई हाईब्रिड "संकर" तरंग बनाती हैं। वर्ष 1987 में ऐनी एल'हुइलियर और उनके सहयोगियों ने एक बड़ा दिलचस्प अवलोकन किया:  जिस तरह एक बाध्ययंत्र "गिटार" के एक टूटे हुए तार से ओवरटोन उत्पन्न किया जा  सकता है उसी प्रकार  शक्तिशाली इन्फ्रारेड लेजर के माध्यम से  कुछ उत्कृष्ट गैसों के परमाणुओं को उत्तेजित कर पराबैंगनी प्रकाश उत्पन्न किया जा  सकता है, जिसका दोलन प्राथमिक लेजर की तुलना में कई गुना ज्यादा होता है।

  
ऐनी एल'हुइलियर और अन्य शोधार्थियों ने पाया कि प्राथमिक लेजर ने गैस के परमाणु से एक इलेक्ट्रॉन को थोड़ी देर के लिए अलग कर दिया है। हालाँकि! कुछ ही समय में एक तरंग का निरूपण करते हुए इलेक्ट्रॉन फिर परमाणु में लौट आया। इस घटना के दौरान परिणामी तरंगें हार्मोनिक ओवरटोन उत्पन्न करती है। इन ओवरटोन की आवृत्ति केवल दो या तीन गुना नहीं बल्कि तीस गुना तक अधिक होती है। निष्कर्षतः इन ओवरटोन का दोलन आपतित प्रकाश के दोलन की तुलना में अत्यधिक पाया गया। काफी गहन अन्वेषण के बाद इन वैज्ञानिकों को परिणामी ओवरटोन की आवृत्तियों की सटीक गणना करने में सफलता प्राप्त हुई। इसके दूसरे चरण में उन्होंने परणामी आवर्तियों को अधिचित्रित करने का कार्य किया और इसमें एक नई हाइब्रिड तरंग को जोड़ा गया।
जिस प्रकार एक ऑर्केस्ट्रा में विभिन्न वाद्ययंत्रों से संगीत के विभिन्न अंशो को मिलाकर एक नई स्वरलय बनाई जा सकती है। ठीक उसी प्रकार एल'हुइलियर और उनकी टीम ने बताया कि विभिन्न तरंग दैर्ध्य के प्रकाश तरंगों को मिलाकर हम वांछित समयावधि के प्रकाश-स्पंन्द प्राप्त कर सकते हैं।

कई वर्षों के शोध के बाद वर्ष 1990 के दशक में, एल'हुइलियर और उनके सहयोगियों ने प्रदर्शित किया कि व्यतिकरण प्रदर्शित करने के लिए विभिन्न तरंग-दैर्ध्य की तरंगों को इस तरह जोड़ा जा सकता है कि उनके शीर्ष एक ही कला में हों और इस तरह हम बहुत छोटे प्रकाश स्पंद उत्पन्न कर सकते हैं। इस नई हाइब्रिड तरंग ने समपोषी व्यतिकरण को दर्शाते हुए एक नई भौतिक विज्ञान की शाखा को जन्म दिया जिसे हम एटोसेकंड भौतिकी के नाम से भी जानते हैं।

वर्ष 2001 में वैज्ञानिक एगोस्टिनी और उनकी टीम ने इन सभी अंशित स्पंदों को इस तरह संयोजित किया कि केवल 250 एटोसेकंड के समयांतराल में  ही लगातार प्रकाश तरंगें स्पंदित हो सकें। इसी बीच दुसरे प्रमुख वैज्ञानिक फ़ेरेन्क क्रॉस्ज़ और उनकी टीम ने 650 एटोसेकंड तक चलने वाले एकल प्रकाश स्पंद को  बिलगित करने में सफलता प्राप्त कर ली थी। दूसरी तरफ वर्ष 2001 में ही वैज्ञानिक एगोस्टिनी की टीम ने एक प्रकाश स्पंद का अवलोकन  किया जो केवल 250 एटोसेकंड तक के समयांतराल का था।  इसी शोध के अनुक्रम में वर्ष 2003 में, एल'हुइलियर के शोध समूह ने 170 एटोसेकंड समयांतराल का प्रकाश स्पंद एवम वर्ष 2008 में वैज्ञानिक फ़ेरेन्क क्राउज़ ने  80-एटोसेकंड समयांतराल की पल्स प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। हाल में ही वैज्ञानिक जैकब वोर्नर एवम उनके शोध सहयोगियों ने समूह 43 एटोसेकंड के समयांतराल की पल्स को प्राप्त करने में सफलता हासिल कर ली है।

एटोसेकंड पल्स की प्रासंगिकता?

भविष्य में एटोसेकंड पल्स की उपयोगिता काफी जगह महसूस एवम तकनीक विकाश में सुनिश्चित की जाएगी जैसे एक हाई-स्पीड कैमरे में  प्रकाश की एटोसेकंड पल्स की सहायता से सरपट दौड़ते घोड़ों की तीव्र चाल को चित्रित किया जा सकता है।  वैसे ही भौतिक विज्ञानी परमाणुओं और अणुओं में इलेक्ट्रॉनों की गतिशीलता को समझ सकते हैं। एटोसेकंड लेजर परमाणुओं और अणुओं के अंदर इलेक्ट्रॉनों के बहुआयमि गति एवम स्थिति का चित्रांकन प्रस्तुत कर सकता है। वर्ष 2008 में वैज्ञानिक क्राउज़ 80 एटोसेकंड समयांतराल की पल्स प्राप्त कर यह सिद्ध करने में सक्षम हुए कि फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव के दौरान इलेक्ट्रॉन का निष्कासन तात्कालिक नहीं होता है।
जैसे कि हम जानते हैं कि नियॉन परमाणुओं के पहले कोश में दो इलेक्ट्रॉन होते हैं और सबसे बाहरी कोश में आठ इलेक्ट्रॉन होते हैं, वैज्ञानिकों ने इस परमाणु को 100-इलेक्ट्रॉन वोल्ट प्रकाश पल्स के साथ  उत्तेजित किया और  उन्होंने पाया कि निम्न-ऊर्जा अवस्था में स्तिथ इलेक्ट्रॉन उच्च-ऊर्जा अवस्था में स्थित इलेक्ट्रॉन की तुलना में 21 एटोसेकंड तेजी से उत्सर्जित होता है। फिर वर्ष 2020 में किए गए एक अन्य प्रयोग से पता चला कि इलेक्ट्रॉन जल वाष्प की तुलना में तरल पानी से दसियों गुना अधिक निकलते हैं। किसी अर्धचालक में जिसे प्रकाश से प्रेरित कर दिया जाय तो अर्धचालक के अंदर इलेक्ट्रॉन ऊर्जा अंतराल को पार कर लेता है।
हाल ही में वैज्ञानिकों ने सॉफ्ट एक्स-रे की प्रकाश किरणों  की  एटोसेकंड पल्स का उपयोग करके इस उपर्युक्त घटना के स्नैपशॉट लेने में सफल हुए हैं, और उन्होंने यह साबित कर दिया है कि इलेक्ट्रॉन को किसी ऊर्जा अंतराल को पार करने में लगभग 450 एटोसेकंड लगते हैं। इन वैज्ञानिकों ने किसी इलेक्ट्रॉन को परमाणु के नाभिकीय सीमा से बाहर निकालने एवम इलेक्ट्रोन का परमाणु के अंदर नाभिकीय सीमा में बंधे होने के समय को मापने के लिए नए उपकरण एवम तकनीकी का उपयोग किया है। यह मापन बताता है कि परमाणु के भीतर इलेक्ट्रॉन  कितनी मजबूती से  बंधा हुआ है। वैज्ञानिक अपने द्वारा विकसित की गई इस तकनीकी से परमाणु के अंदर इलेक्ट्रोन के पूरे गति चक्र के स्नैपशॉट लेने और उन्हें संयोजित करके विस्तृत चित्रांकन करने में सक्षम पाए गए हैं। और वे बता सकते हैं कि अणुओं के अंदर इलेक्ट्रॉन एक स्थान से दूसरे स्थान पर कैसे जाते हैं।
साथ ही साथ इन भौतिकविदों ने यह भी प्रदर्शित  किया है कि एटोसेकंड पल्स एक अल्ट्राफास्ट प्रकाश-प्रेरित स्विच की तरह भी कार्य कर सकता है। जिसे प्रकाश की एक चमक से पल्स इलेक्ट्रॉन को उत्सर्जित किया जा सकता है और पदार्थ को एक आयनिक चालक बनाया जा सकता है और यदि पल्स को बंद कर दें तो  इलेक्ट्रॉन को फिर वापस लाया जा सकता  हैं और पदार्थ पुनः इन्सुलेटर की भांति कार्य करेगा। वैज्ञानिक क्राउज़ और उनकी टीम जैविक नमूनों के साथ भी प्रयोग कर रही है और हाल ही में उन्होंने दिखाया है कि मानव रक्त पर एटोसेकंड फ्लैश सामान्य और कैंसरग्रस्त कोशिकाओं में भिन्न परिवर्तन उत्पन्न करता है।

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